जो गिरे कोई तो थाम लो
जिन्दगी के रंग कई
धूप तो छाँव कहीं
दर्द है, तो सकून भी
नफरत के साथ प्यार भी।
समय ने दिखये रंग
दूर दूर हैं सब
घबराते हैं मिलने से भी
क्या वक्त है?…..
अथिति देवो भव:
अब कहता नहीं कोई
जान पर बन आई है
या यूं कहें, बना ली है
छूने से भी डर रहे
भूल रहे हैं कि जीव
तो हैं प्रकृति के सभी।
याद दिलाऊ, कि
तार एक ही है जोड़े
bजड़, जीव, मानव….सभी
चेतना के ही तो रूप कई
अद्वैत भी द्वैत भी
बंधे डोर एक ही
मुक्त नहीं हम,
जो बंधन में हो कोई
सुकून नहीं,
जो कराह रहा हो कोई
तार चेतना, में ही,
तो फूल पिरोए सभी।
ठहरो, देखो, सुनो, अनुभव करो
प्यार के सागर को
जो हृदय में बस रहा कहीं
उजागर करो, बांटो तो सही
करुणा,दया, सांत्वना
समय की यह पुकार कि चाह यही
बड़ो, थाम लो, जो गिरे कोई
हैं सभी तुम्हारे
तुम सभी के, जीवन का सार यही।
Here is a poem just questioning life, what is it? A dream. It changes colours. There is a smile on my lips or tears in my eyes. Happy or panicked. Giving or snatching away everything. One wonders at the contradictions it reflects.
क्या है तू जिंदगी
क्या है तू जिंदगी
एक स्वप्न
पल में बदले रंग
अधरो पर मुस्कान
आँखों में नमी
हृदय प्रफुल्लित
या
चीख पुकार कहीं
देने को आतुर
या छीन ले सभी
स्वयं में अपवाद
है तू जिंदगी।
निरुपमा
Written by Nirupma Chowdhary