एक आंचल की छांव
को खोजता है हर कोई
जिंदगी के हर मुकाम पर
हर मोड़ पर, हर रह पर!
उन प्यार भरे लम्हों को
जब चूमा था माथा
हल्के हाथों से बालों को सहलाया
उन नजरो को
जिन में था अथाह प्रेम!
कभी नासिहयत और कभी चेतावनी
वो हल्की सी चपत
वो फटकार , जिसने गलती से रोका
गिरने पर,उठा गोद में बिठाना
अपने हाथों से खाना खिलाना
बीमार होने पर सिरहाने बैठे
रात गुजार देना
दही चीनी से मुंह मीठा करा
उन्नति की कामना करना
हंसने पर हंसना और
रोने पर आंखे भर लेना
रूठने पर मुनहार करना
वो आंचल की छांव
को खोजता है हर कोई
मां के आंचल की छांव
को खोजता है हर कोई!
निरुपमा
एक आंचल की छांव
